निकालो या निभाओ?” कांग्रेस में शशि थरूर पर मचा घमासान, अगला सिंधिया बनने को तैयार?
Shashi Tharoor Controversy: ऑपरेशन सिंदूर के बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व स्वीकार कर विवादों में आए शशि थरूर, कांग्रेस में बढ़ी बेचैनी। जानें पार्टी के अंदर का असंतोष और आगे की रणनीति।

कभी पार्टी की ‘सोशल मीडिया स्टार’ कही जाने वाली शख्सियत शशि थरूर आज कांग्रेस के लिए एक नई पहेली बनते जा रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई का प्रस्ताव उन्होंने स्वीकार कर लिया वो भी उस समय जब पार्टी ने स्पष्ट रूप से इससे किनारा करने का इशारा दिया था।
थरूर की इस स्वीकृति ने कांग्रेस आलाकमान को असहज कर दिया है। भले ही पार्टी ने अब सार्वजनिक रूप से इस दौरे पर कोई विरोध नहीं जताया हो, लेकिन अंदरखाने हलचल साफ है। कई वरिष्ठ नेता मान रहे हैं कि थरूर का पार्टी में बने रहना अब नुकसानदेह हो सकता है।
क्या थरूर भी बनेंगे अगला सिंधिया या जितिन प्रसाद?
कांग्रेस के हालिया इतिहास में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जब पार्टी के "उभरते सितारे" बागी तेवर अपनाकर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। चाहे वह ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या जितिन प्रसाद। अब पार्टी के भीतर एक तबका मानता है कि थरूर को लेकर पहले से निर्णय लेना ही बेहतर होगा, ताकि कोई बड़ा ‘राजनीतिक झटका’ न लगे।
इस तर्क के पीछे यह भी तर्क है कि थरूर लगातार ऐसे स्टैंड लेते रहे हैं जो पार्टी लाइन से मेल नहीं खाते। चाहे वह G-23 ग्रुप में शामिल होना हो, मोदी सरकार की विदेश नीति पर नरम रुख दिखाना हो या अब ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार का प्रस्ताव स्वीकार करना हो।
थरूर का पोस्ट, पार्टी की परेशानी
थरूर ने सोशल मीडिया पर इस नई जिम्मेदारी को “सम्मान” बताया, लेकिन पोस्ट में कांग्रेस का नाम तक नहीं लिया। पार्टी इसे अपमान की तरह देख रही है। कांग्रेस की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि थरूर ने यह फैसला पार्टी से सलाह लिए बिना लिया। यह बात नेतृत्व की अनदेखी जैसी प्रतीत होती है और पार्टी अनुशासन के खिलाफ भी।
कांग्रेस की दुविधा: सख्ती दिखाएं या नुकसान झेलें?
अब कांग्रेस के सामने दो राहें हैं या तो वह थरूर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करे और बीजेपी को हमला करने का मौका दे, या फिर चुप रहकर अंदरुनी असंतोष को झेलती रहे। दोनों विकल्प पार्टी के लिए भारी हैं।
केरल में पड़ सकता है असर
थरूर की लोकप्रियता विशेषकर केरल में काफी है। वहां कांग्रेस को मजबूत माना जाता है, लेकिन थरूर के किसी ‘गैर-राजनीतिक’ स्टैंड का स्थानीय चुनावों पर सीधा असर पड़ सकता है। 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी नहीं चाहती कि कोई अंदरूनी दरार बाहर आए।
थरूर: वरदान या बोझ?
शशि थरूर की शैली, उनका इंटरनेशनल अपील और सोशल मीडिया पर जबरदस्त पकड़ उन्हें कांग्रेस के लिए एक आकर्षण बनाती है। लेकिन जब यह आकर्षण पार्टी लाइन से टकराने लगे, तो वही नेता "बोझ" बन सकता है। अब देखना है कि कांग्रेस इस असमंजस को किस तरह सुलझाती है — क्या थरूर को मनाया जाएगा, या विदाई की पटकथा तैयार हो चुकी है?